Friday 4 September 2015

ठान लिया था कि, अब और शायरी नहीं लिखेंगे

ठान लिया था कि, अब और शायरी नहीं लिखेंगे...
पर उनकी मासूमियत देखी तो अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे...!!

इतनी हिम्मत नहीं कि किसी को हाल-ए-दिल सुना सकें,
बस जिसके लिए उदास है वो महसूस कर ले तो क्या बात है...

वास्ता नहीं रखना तो नज़र क्यों रखती हो...
किस हाल में हूँ ज़िंदा,ये ख़बर क्यों रखती हो...

तू एक बार मेरी निगाहो मे देख कर कह दे,कि हम तेरे काबिल नही,
कसम तेरी और इन चलती साँसो की,हम तुझे देखना तक छोड़ देंगे...

हर रोज़ हर वक्त तेरा ही ख्याल...
न जाने किस कर्जे की किश्त हो" तुम...

मेरी हैसियत से ज्यादा मेरे थाली में तूने परोसा है,
तू लाख मुश्किलें भी दे दे मालिक,मुझे तुझपे भरोसा है।

वो सो जाती हैं अक्सर हमें याद किये बगैर,
हमें नींद नहीं आती उनसे बात किये बगैर,
कसूर उनका नहीं कसूर तो हमारा है,
उन्हें चाहा भी तो हमने उनकी इजाजत के बगैर...

उसने कहा हमसे... हम बर्बाद कर देंगे...
हमने मुस्करा के पूछा... 
क्या तुम भी मोहब्बत करोगी हमसे?

तेरे दीदार की तलाश में आते है तेरी गलियों में,
वरना आवारगी के लिए पूरा शहर पड़ा है...

चला जाऊंगा बहुत दूर,इतना दूर...
कि शायद मेरा कोई अस्तित्वही ना बचे,
फिर वहां से देखूंगा कितनों के चेहरे पर मुस्कान आयी!!

बिछड के इक दूजे से,हम कितने रंगीले हो गए,☹
मेरी आँखे लाल हो गई उनके हाथ पीले हो गए..!!

जलती है औरों के लिए फिर भी बदनाम होती है,
सिगरेट तू कहीं औरत तो नहीं...!!

टिकटें लेकर बैठें हैं कुछ लोग मेरी ज़िन्दगी की,
तमाशा भी भरपूर होना चाहिए...

जीत लूँ तुझे ज़माने की हर ताकत से,
एक बार जो तू आमीन कह दे मेरी दुआ के बाद...!!

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