Thursday 10 December 2015

आज तो मिलने चली आओ

आज तो मिलने चली आओ,
इतनी धुंध में भला कौन देखेगा...!!

चलो आज ये दुनिया बाँट लेते है,
तुम मेरी और बाकी सब तुम्हारा...!!

चलो हमारे दरमियाँ कुछ तो रहेगा,
चाहे वो फ़ासला ही सही...!!

तेरे लिये इस दिल ने कभी बुरा नही चाहा...
ये और बात है मुझे साबित करना नही आया...!!

ठंढी हवाएं क्या चली मेरे शहर मे...?
हर तरफ तेरी यादों का "दिसंबर" बिखर गया...!!

हमारी ख़ामोशी पर मत जाओ " गुरू "...
राख के नीचे अक्सर आग दबी होती है...!!

जख्म छुपाना भी एक हुनर है " गुरू ",
वरना यहाँ हर मुठ्ठी में नमक है...!!

तुझको दिल से निकालने के लिए,
दिल को खुद से निकाल बैठे हैं...!!

मैं खुद भी अपने लिए अजनबी हूं...
मुझे गैर कहने वाले...
तेरी बात मे दम है "गुरू"...!!

इसी बात ने उसे शक में डाल दिया होगा शायद,
इतनी मोहब्बत, उफ्फ…कोई मतलबी हीं होगा...!!

कल कुछ अजीब हुआ

कल कुछ अजीब हुआ...
एक दुकान पे मै जाके बोला
"5 रू वाली 50 डेरी मिल्क देना"
सुनते ही बनिये का बेटा मेरी ओर देखकर
मुस्कुराते हुये बोला "अरे वाह
भय्याजी इतनी सारी गर्ल फ्र॓न्ड,
सही चाकलेट डे तो आप ही मनाओगे,
हमे भी तो मिलवाओ
"ठीक शाम को तैयार रहना" मैने कहा।
और जब शाम को अनाथ आश्रम की नन्ही बच्चियों ने
डेरी मिल्क लेकर "लव यू भैया" बोला
तो उसकी आँखो मे आँसू आ गये बोला
" सही है भैया असली चाँकलेट डे तो आप ही मनाते हो"

जो बरस जाये वही बादल अच्छे हैं

जो बरस जाये वही बादल अच्छे हैं,
जो निगाहों को सजा दे वही काजल सच्चे हैं,
सयानों ने कुछ इस कदर बर्बाद कर दी है दुनिया,
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं...!!

क्या सिर्फ इतना ही प्यार था, हम सब में यारों,
साथ बैठना छोड़ दिया, तो याद करना भी छोड़ दिया...!!

ये ख़ामोश मिजाजी तुम्हे जीने नहीँ देगी "गुरु",
इस दौर मे जीना है तो कोहराम मचा दो...!!

मेरी रूह गुलाम हो गई है, तेरे इश्क़ में शायद,
वरना यूँ छटपटाना मेरी आदत तो ना थी "गुरु"...!!

दिल को डेटॉल में भिगो के रखिये,
ये इश्क बड़ी संक्रामक बीमारी है...

कोई तो कर रहा है मेरी कमी पूरी,
तभी तो मेरी याद तुम्हें अब नहीं आती...

अब कटेगी जिन्दगी सुकून से,
अब हम भी मतलबी हो गये है...

उस एक चेहरे ने हमें "तन्हा" कर दिया...
वरना, 
हम तो अपने आप में ही एक "महफ़िल" हुआ करते थे...!!

तुमसे किसने कह दिया कि मोहब्बत की बाज़ी हार गए हम ???
अभी तो दांव मे चलने के लिए मेरी जान बाकी है...!!

देख ली न तूने मेरे आसुँओ की ताकत,
कल रात मेरी आँखे नम थी,
और आज तेरा पूरा शहर भीग रहा है...!!

इश्क़ उनके लिए इक खेल था...
और हम दिलों-जान से खेल गए...!!

और भी बनती लकीरें दर्द की शायद,
शुक्र है तेरा खुदा जो हाथ छोटा सा दिया...!!

जब इश्क और इंकलाब का अंजाम एक ही है...
तो आशिक बनने से अच्छा है भगत सिंह बन जाऊं...!!

मैं तेरे घर के पास मेरा घर बसा रहा था

मैं तेरे घर के पास मेरा घर बसा रहा था,
गुमान ऐसा था मानो ताजमहल बना रहा था,
वो शाही इमारत मोहब्बत की निशानी है,
तो मैं आशियाना बदलके आशिकी निभा रहा था,
चौबारे पर चूने से पलस्तर कर रहा था,
संगमरमरी दालान का ख्याल आ रहा था,
तेरे शहर से मेरा शहर मीलों दूर था,
झरोखा झरोखे को याद दिला रहा था,
शाहजहाँ चाँद तक मीनारों से पहुँचा था,
मैं तेरी छत तक सीढियाँ लगा रहा था,
यूँ तो तेरी गली पर हक़ पहले भी था,
उसे मेरी कहने के लिए मरा जा रहा था,
इश्क के अफसानो में दरिया लाजिम बहते है,
मेरे छज्जे के नीचे तेरा आँगन नहा रहा था,
इस कोशिश में कि तेरा दीदार हो,
हर वक़्त मेरा मकान शीशमहल में बदलता जा रहा था...