Thursday 10 December 2015

मैं तेरे घर के पास मेरा घर बसा रहा था

मैं तेरे घर के पास मेरा घर बसा रहा था,
गुमान ऐसा था मानो ताजमहल बना रहा था,
वो शाही इमारत मोहब्बत की निशानी है,
तो मैं आशियाना बदलके आशिकी निभा रहा था,
चौबारे पर चूने से पलस्तर कर रहा था,
संगमरमरी दालान का ख्याल आ रहा था,
तेरे शहर से मेरा शहर मीलों दूर था,
झरोखा झरोखे को याद दिला रहा था,
शाहजहाँ चाँद तक मीनारों से पहुँचा था,
मैं तेरी छत तक सीढियाँ लगा रहा था,
यूँ तो तेरी गली पर हक़ पहले भी था,
उसे मेरी कहने के लिए मरा जा रहा था,
इश्क के अफसानो में दरिया लाजिम बहते है,
मेरे छज्जे के नीचे तेरा आँगन नहा रहा था,
इस कोशिश में कि तेरा दीदार हो,
हर वक़्त मेरा मकान शीशमहल में बदलता जा रहा था...

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