Saturday 28 November 2015

बिखरे पड़े हैं शब्द मेज़ पर

मुझे ढुंढने की कोशिशे अब मत किया कर,
तूने रास्ता बदला तो हमने मंजिल...

उसे गैरो के साथ बात करते देखा तो दुख हुआ,
फिर याद आया हम कौन से उसके अपने थे...!!

जाते जाते उसने सिर्फ इतना ही कहा था मुझसे...
"ओ पागल...अपनी जिंदगी जी लेना
वैसे प्यार अच्छा करते हो"...

बिखरे पड़े हैं शब्द मेज़ पर... 
क़लम उठा तो लेता हूँ, 
सलीके से पन्ने पर सजा नही पाता...
तुझे लिखूं? तेरी याद लिखूं? 
आख़िरी मुलाक़ात लिखूं?
यार-दोस्त कहने लगे हैं...
"तेरी शायरी अब वो मज़ा नही लाती गुरु"

मैं उस बेवफा का सबसे पसंदीदा खिलौना था,
वो रोज जोड़ती थी मुझे फिर से तोड़ने के लिये...

अब हमने भी कलम रखना सीख लिया है "गुरु",
जिस दिन वो कहेगी मुझे तुमसे मोहब्बत है,
दस्तखत करवा लूंगा...!!

वो सुना रही थी अपनी वफाओं के किस्से,
जब हम पर नज़र पड़ी तो खामोश हो गयी...

आओ फिर से दोहराए अपनी कहानी,
मैं तुम्हें बेपनाह चाहूंगा और
तुम मुझे बेवजह छोङ जाना...!!

गीली लकड़ी सा इश्क मेरा...
न जल पाया न बुझ पाया,
बस सुलग रहा है धुँआ धुँआ सा...

अर्ज़ किया है गौर फरमाइयेगा...
बड़ा इतराती फिरती थी वो अपने हुस्न-ए- रुखसार पर...
.
मायूस बैठी है जब से देखी है अपनी तस्वीर कार्ड- ए- आधार पर...

कितना खूबसूरत इलज़ाम लगा दिया मुझ पर

मोहब्बत भी ठंड के जैसी हैँ साहब,
लग जायेँ तो बीमार कर देती है...!!

मेरी आँखों में छुपी उदासी को महसूस तो कर...
हम वह हैं जो सब को हंसा कर रात भर रोते है…!!

वो लौट आयी मेरी ज़िंदगी में अपने मतलब के लिये,
और मैं ये सोंचता रहा कि मेरी दुआओं में दम था...!!

उसके ख्वाबों का भी है शौक,
उसकी यादों में भी मज़ा...
समझ में नही आता,
सो जाऊँ की उसे याद करूँ...??

अब शिक़ायत तुझसे नहीं ख़ुद से है,
माना कि सारा फ़रेब तेरा था पर यक़ीन तो मेरा था...!!

तेरी-मेरी राहें तो कभी एक थी ही नहीं,
फिर शिकवा कैसा और शिकायत कैसी...??

एक बात पूछें तुमसे...जरा दिल पर हाथ रखकर फरमाइयेगा,
जो इश्क़ हमसे सीखा था..अब वो किससे करती हो...??

कितना खूबसूरत इलज़ाम लगा दिया मुझ पर...
आँखों में खुद बसी हैं मेरे और कहती हैं मैंने सोने न दिया...!!

बहुत रोका लेकिन रोक नहीं पाया,
मोहब्बत बढ़ती गई मेरे गुनाहों की तरह...

तुझे हर बात पर मेरी जरुरत पङती,
काश मै भी एक झूठ होता....!!

आज मेरी ‪#‎Teacher‬💃
बोली तू इतना Attitude दिखाएगा,
तो पढ़ 📝
 नही पाएगा,
मैने कहा ‪#‎मैडम‬ जी अगर मैंने Attitude दिखाया,
तो आप पढ़ा नहीं पाएँगी...

Thursday 19 November 2015

शायर बना दिया अधूरी मोहब्बत ने

शायर बना दिया अधूरी मोहब्बत ने...
मोहब्बत अगर पूरी होती तो हम भी एक ग़ज़ल होते...

इंटरनेट से सारी ब्राउज़र हिस्ट्री डिलीट,
और व्हाट्सप्प से गैलरी एंड वीडियोज़,
बस हो गयी हमारी दिवाली की साफ़ सफाई...
हैप्पी साफ़ सुथरी दिवाली...

कह दो अंधेरों से कहीं और घर बना लें,
मेरे मुल्क में रौशनी का सैलाब आया है...

चाहे पूरे साल भले ही पड़ोसियों को मुंह न दिखाए,
पर दिवाली के दिन उनके घर मिठाईयां खाने जरूर जाये...
हैप्पी दीपावली...

वो हमसे इस कदर नाराज़ हुए बैठी है,
समझ नही आता कि, 
उसे मनाए या फिर दिवाली..!!!

यूँ तो वजह बहुत हैं मेरे रूठ जाने की,
मगर...
इस ख्याल से चुप हूँ कि मनायेंगा कौन...??

जाने किसकी तलाश उनकी आँखों में थी

जाने किसकी तलाश उनकी आँखों में थी,
आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे,
जितने भी वो चले, उतने ही बिछ गए राह में फासले,
ख्वाब मंजिल थे और मंजिले ख्वाब थी,
रास्तों से निकलते रहे रास्ते,
जाने किस वास्ते आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे...
----------------शुभम सचान "गुरु"----------------
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कल मैंने पटाखों की दुकान से दूर हाथों में

मन की बात : शुभम सचान "गुरु" के साथ...
कल मैंने पटाखों की दुकान से दूर हाथों में,
कुछ सिक्के गिनते उसे देखा…!!
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एक गरीब बच्चे की आंखो में,
मैने दिवाली को मरते देखा…!!
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थी चाह उसे भी नए कपड़े पहनने की,
पर उन्ही पुराने कपड़ों को मैने उसे साफ करते देखा…!!
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हम करते है सदा अपने ग़मो की नुमाईश,
उसे चुपचाप ग़मो को पीते देखा…!!
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जब मैने पूंछा, “बच्चे, क्या चाहिए तुम्हे”?
तो उसे चुपचाप मुस्कुरा कर,
”ना” मे सिर हिलाते देखा…!!
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थी वह उम्र बहुत छोटी अभी,
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा…!!
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रात को सारे शहर के दीपों की लौह में,
मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरे को देखा…!!
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हम तो ज़िन्दा हैं अभी शान से यहाँ,
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा…!!
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लोग कहते हैं,
त्यौहार होते हैं ज़िन्दगी में खुशियों के लिए,
तो क्यों मैने उसे मन ही मन में घुटते और तरसते देखा…???

कभी जमीं कभी आसमान समझ में नहीं आता

कभी जमीं कभी आसमान समझ में नहीं आता,
इस दिल का ठिकाना भी समझ में नहीं आता...
मेरी आँखें उसकी यादों के चराग तो नहीं,
क्यों आये बस वो ही नज़र समझ में नहीं आता...
चाहे अनचाहे में उसे याद किया करता हूँ,
ये लत है या आदत समझ में नहीं आता...
कमबखत आशिक़ी ने जीना हराम कर दिया,
उसे भूलू या अपनी जान दूँ समझ में नहीं आता...
इस तरफ मेरा घर है उस तरफ उसका घर,
इधर जाऊ या उधर समझ में नहीं आता...
पागल सा बनके रह गया कुछ सोच सोचकर,
पहले हँसू या रोऊँ समझ में नहीं आता...
लिफाफा फट चुका मजमून भी काफी पुराण हो गया,
उसे दूँ या खत जला दूँ समझ में नहीं आता...
उसकी वफ़ा पे अब मुझे शक होने लगा है,
उसे यार कहूँ या गद्दार समझ में नहीं आता...
रक़ीबों के साथ बैठे हैं अजीज-ओ-मोहात्रिम,
कैसे करूँ सलाम समझ में नही आता...
समझाले दिल को मस्त मगन कुछ और न समझ,
फिर खुद समझ जायेगा जो समझ मैं नहीं आता...