Saturday 27 February 2016

लिख देना ये अलफ़ाज़

रूकवा लेना दोस्तों मेरा जनाजा,
जब उसका घर आए...
शायद वो झांक ले खिड़की से,
और मेरा दिल धड़क जाए...!!

मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक़्त बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं...
मेरी गली से गुज़रते हैं छुपा के खंजर,
रु-ब-रु होने पर सलाम किया करते हैं...!!

सुना था, मोहब्बत मिलती है मोहब्बत के बदले,
लेकिन जब हमारी बारी आई तो रिवाज ही बदल गया...!!

आज मौसम बहुत सर्द है ए दिल,
चलो कुछ ख्वाहिशों को आग लगाते हैं...!!

लिख देना ये अलफ़ाज़ मेरी कब्र पर,
मौत अच्छी है मगर दिल का लगाना अच्छा नही...!!

ये सोंचना गलत है कि तुम पर नजर नही है,
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेखबर नही हैं...!!

हम तो आइना हैं दाग दिखाएंगे उस चेहरे के,
जिसको बुरा लगे वो सामने से हट जाये...!!

उस दिल की महफ़िल में आज अजीब सा सन्नाटा है,
जिसमे कभी तेरी हर बात पर महफ़िल सजा करती थी...!!

तुम्हारी गली के पीसीओ के पास वाली दीवार पे लिखा वही रॉंग नंबर हूँ मैं...
जो कई रंगो से पुत गया है अब...!!

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