Saturday 27 February 2016

सोंच रहा हूँ शायरी लिखना बंद कर दूँ

सोंच रहा हूँ शायरी लिखना बंद कर दूँ अब मैं यारों...
मेरी शायरी की वजह से दूसरों की आँखों में आंसू अब देखे नहीं जाते...!!

न कर जिद ए दिल अपनी हद में रह,
वो बड़े लोग हैं,अपनी मर्जी से याद करते हैं...!!

कहाँ मिलता है कोई समझने वाला,
जो भी मिलता है...
समझा के चला जाता है...!!

कल रात को सोते हुए एक बेवज़ह सा ख़याल आया,
सुबह न जाग पाऊँ तो क्या उसे ख़बर मिलेगी कभी...!!

दिन में काम नहीं सोने देता,
और रात में एक नाम नहीं सोने देता...!!

आज महिफल शांत कैसे है,
जख्म भर गये...या फिर
मोहब्बत फिर से मिल गयी...!!

मैं तेरा कोई नहीं मगर इतना तो बता,
ज़िक्र से मेरे,तेरे दिल में आता क्या है???

लड़का होना भी कोई आसान बात नही होती,
दिल टूटने के बाद भी खुश रहना पड़ता है
दुनिया के सामने...!!

ख़ुद भी शामिल नहीं हूँ सफ़र में

अगर बनना है तो गुलाब के फूल की तरह बनो,
क्योंकि ये फूल उसके हाँथ में भी खुशबू छोड़ देता है,
जो इसे मसल कर फेंक देता है...!!

ये जानते हुए भी कि तू नहीं है,
न जाने बेचैनियाँ मेरे भीतर तलाशती क्या हैं...!!

सर्दियाँ अब जाने को हैं...
और जाती हुई कोई भी चीज़ अच्छी नहीं लगती अब...!!

तू जहाँ तक कहे, "उम्मीद" वहाँ तक रखूँ,
पर हवाओं में "घरौंदे" मैं कहाँ तक रखूँ,
"दिल" की वादी से "ख़िज़ाओं" का अजब रिश्ता है,
फूल "ताज़ा" तेरी "यादों" के कहाँ तक रखूँ...!!

क्यूँ हर बात में कोसते हैं लोग नसीब को,
क्या नसीब ने कहा था कि मोहब्बत कर लो...!!

अब इतना भी सादगी का जमाना नहीं रहा,
कि तुम वक्त गुजारो अौर हम प्यार समझे...!!

बड़ी ज़ालिम होती है ये एकतरफा मोहब्बत,
वो याद तो आती हैं पर याद नहीं करती...!!

उसकी गहरी नींद का मंज़र भी कितना हसीन होता होगा,
तकिया कहीं... ज़ुल्फ़ें कहीं...और वो खुद कहीं...!!

ना जाने वो मुझे इतना प्यार क्यों करती है???
मैंने तो "माँ" को कभी गुलाब नहीं दिया...!!

याद उसे भी एक अधूरा अफ़साना तो होगा,
कल रस्ते में उसने हमको पहचाना तो होगा...!!

कौन खरीदेगा अब हीरों के दाम मे तुम्हारे आँसू,
वो जो दर्द का सौदागर था न,
अब मोहब्बत छोड़ दी है उसने...!!

ख़ुद भी शामिल नहीं हूँ सफ़र में,
मगर लोग कहते हैं...कि क़ाफ़िला हूँ मैं...!!

महसूस कर रहें हैं तेरी लापरवाहियाँ कुछ दिनों से...
याद रखना अगर हम बदल गये तो,
मनाना तेरे बस की बात ना होगी...!!

माँ बहुत झूठ बोलती है

माँ बहुत झूठ बोलती है.....
सुबह जल्दी जगाने को, सात बजे को आठ कहती है।
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है।
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती है।
छोटी छोटी परेशानियों पर बड़ा बवंडर करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
थाल भर खिलाकर, तेरी भूख मर गयी कहती है।
जो मैं न रहूँ घर पे तो, मेरी पसंद की कोई चीज़ रसोई में उससे नहीं पकती है।
मेरे मोटापे को भी, कमजोरी की सूजन बोलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए, बोल कर,
मेरे साथ दस लोगों का खाना रख देती है।
कुछ नहीं-कुछ नहीं बोल, नजर बचा बैग में, छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
टोका टाकी से जो मैं झुँझला जाऊँ कभी तो,
समझदार हो, अब न कुछ बोलूँगी मैं,
ऐंसा अक्सर बोलकर वो रूठती है।
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती हो जाती है।
.........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाऊँगी,
सारी फ़िल्में तो टी वी पे आ जाती हैं,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है,
बहानों से अपने पर होने वाले खर्च टालती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
मेरी उपलब्धियों को बढ़ा चढ़ा कर बताती है।
सारी खामियों को सब से छिपा लिया करती है।
उसके व्रत, नारियल, धागे, फेरे, सब मेरे नाम,
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
भूल भी जाऊँ दुनिया भर के कामों में उलझ,
उसकी दुनिया में वो मुझे कब भूलती है।
मुझ सा सुंदर उसे दुनिया में ना कोई दिखे,
मेरी चिंता में अपने सुख भी किनारे कर देती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
उसके फैलाए सामानों में से जो एक उठा लूँ
खुश होती जैसे, खुद पर उपकार समझती है।
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे उदास होकर,
सोच सोच अपनी तबियत खराब करती है।
..........माँ बहुत झूठ बोलती है।।
" हर माँ को समर्पित "

शायर बनना बहुत आसान है " गुरु "

जिन फूलों की परवरिश हमने अपनी मोहब्बत से की,
जब वो खुशबू के काबिल हुये तो औरों के लिए महकने लगे...!!

हर दर पर लहराता ये तिरंगा रहे,
हम रहें न रहें दुनिया में बस ये तिरंगा रहे,
सूख जाएँ आंसू हम सभी की आँखों से,
मेरे मुल्क में बहती सदा गंगा रहे,
दूर हो जाएँ हम सभी के दिलों से नफ़रतें,
जमीं पर कहीं भी न बाकी दंगा रहे,
ढक जाये बदन सब मुस्लिफों के भी,
मेरे प्यारे भारत में न कोई नंगा रहे,
होने न पाये द्रौपदी कोई लज्जित " गुरु ",
धरा पर दुर्योधन की न कोई जंघा रहे...!!

आ गया है फर्क उसकी नजरों में यकीनन,
अब एक खास अंदाज़ से, नजर अंदाज़ करती हैं हमे...!!

चलती हुई "कहानियों" के जवाब तो बहुत हैं मेरे पास,
लेकिन खत्म हुए "किस्सों" की खामोशी ही बेहतर है...!!

दाद देते है तुम्हारे नजर-अंदाज करने के हुनर को,
जिसने भी सिखाया, वो "उस्ताद" कमाल का होगा...!!

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के...!!

शायर बनना बहुत आसान है " गुरु "...
बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री होनी चाहिए...!!

पागल हैं वो लोग जो 14 Feb को propose करते हैं ।
मैं तो कहता हूँ 1 April को करना चाहिए ।
मान गई तो Cool...
.
नहीं तो
.
दीदी April fool...!!

रहता तो नशा तेरी यादों का ही है,
लेकिन जब कोई पूछता है,
तो कह देता हुँ, पी रखी है...!!

मैंने उन सब चिड़ियों के पर काट दिए हैं,
जिन को अपने अंदर उड़ते देखा था...!!

मौसम में मस्त अजब सी खुमारी छा गई है,
अब लगता है मोहब्बत की फ़रवरी आ गई...💕

वो अगर हमसे बिछड कर खुश है,
तो खुदा करे...
मिलन का कोई मुकाम ना आये...!!

लिख देना ये अलफ़ाज़

रूकवा लेना दोस्तों मेरा जनाजा,
जब उसका घर आए...
शायद वो झांक ले खिड़की से,
और मेरा दिल धड़क जाए...!!

मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक़्त बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं...
मेरी गली से गुज़रते हैं छुपा के खंजर,
रु-ब-रु होने पर सलाम किया करते हैं...!!

सुना था, मोहब्बत मिलती है मोहब्बत के बदले,
लेकिन जब हमारी बारी आई तो रिवाज ही बदल गया...!!

आज मौसम बहुत सर्द है ए दिल,
चलो कुछ ख्वाहिशों को आग लगाते हैं...!!

लिख देना ये अलफ़ाज़ मेरी कब्र पर,
मौत अच्छी है मगर दिल का लगाना अच्छा नही...!!

ये सोंचना गलत है कि तुम पर नजर नही है,
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेखबर नही हैं...!!

हम तो आइना हैं दाग दिखाएंगे उस चेहरे के,
जिसको बुरा लगे वो सामने से हट जाये...!!

उस दिल की महफ़िल में आज अजीब सा सन्नाटा है,
जिसमे कभी तेरी हर बात पर महफ़िल सजा करती थी...!!

तुम्हारी गली के पीसीओ के पास वाली दीवार पे लिखा वही रॉंग नंबर हूँ मैं...
जो कई रंगो से पुत गया है अब...!!