Thursday 19 November 2015

कल मैंने पटाखों की दुकान से दूर हाथों में

मन की बात : शुभम सचान "गुरु" के साथ...
कल मैंने पटाखों की दुकान से दूर हाथों में,
कुछ सिक्के गिनते उसे देखा…!!
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एक गरीब बच्चे की आंखो में,
मैने दिवाली को मरते देखा…!!
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थी चाह उसे भी नए कपड़े पहनने की,
पर उन्ही पुराने कपड़ों को मैने उसे साफ करते देखा…!!
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हम करते है सदा अपने ग़मो की नुमाईश,
उसे चुपचाप ग़मो को पीते देखा…!!
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जब मैने पूंछा, “बच्चे, क्या चाहिए तुम्हे”?
तो उसे चुपचाप मुस्कुरा कर,
”ना” मे सिर हिलाते देखा…!!
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थी वह उम्र बहुत छोटी अभी,
पर उसके अंदर मैने ज़मीर को पलते देखा…!!
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रात को सारे शहर के दीपों की लौह में,
मैने उसके हँसते, मगर बेबस चेहरे को देखा…!!
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हम तो ज़िन्दा हैं अभी शान से यहाँ,
पर उसे जीते जी शान से मरते देखा…!!
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लोग कहते हैं,
त्यौहार होते हैं ज़िन्दगी में खुशियों के लिए,
तो क्यों मैने उसे मन ही मन में घुटते और तरसते देखा…???

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