Thursday 19 November 2015

जाने किसकी तलाश उनकी आँखों में थी

जाने किसकी तलाश उनकी आँखों में थी,
आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे,
जितने भी वो चले, उतने ही बिछ गए राह में फासले,
ख्वाब मंजिल थे और मंजिले ख्वाब थी,
रास्तों से निकलते रहे रास्ते,
जाने किस वास्ते आरज़ू के मुसाफिर भटकते रहे...
----------------शुभम सचान "गुरु"----------------
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