Thursday 10 December 2015

आज तो मिलने चली आओ

आज तो मिलने चली आओ,
इतनी धुंध में भला कौन देखेगा...!!

चलो आज ये दुनिया बाँट लेते है,
तुम मेरी और बाकी सब तुम्हारा...!!

चलो हमारे दरमियाँ कुछ तो रहेगा,
चाहे वो फ़ासला ही सही...!!

तेरे लिये इस दिल ने कभी बुरा नही चाहा...
ये और बात है मुझे साबित करना नही आया...!!

ठंढी हवाएं क्या चली मेरे शहर मे...?
हर तरफ तेरी यादों का "दिसंबर" बिखर गया...!!

हमारी ख़ामोशी पर मत जाओ " गुरू "...
राख के नीचे अक्सर आग दबी होती है...!!

जख्म छुपाना भी एक हुनर है " गुरू ",
वरना यहाँ हर मुठ्ठी में नमक है...!!

तुझको दिल से निकालने के लिए,
दिल को खुद से निकाल बैठे हैं...!!

मैं खुद भी अपने लिए अजनबी हूं...
मुझे गैर कहने वाले...
तेरी बात मे दम है "गुरू"...!!

इसी बात ने उसे शक में डाल दिया होगा शायद,
इतनी मोहब्बत, उफ्फ…कोई मतलबी हीं होगा...!!

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