Tuesday 19 January 2016

टूट कर बिखर जाता है ये दिल

मुझे फर्क नही पड़ता दिसम्बर के बीत जाने से,
उदासी मेरी फितरत है इसे मौसम से क्या मतलब...??

ये कहना था उससे मोहब्बत है मुझको
ये कहने में मुझको ज़माने लगे थे...!!

टूट कर बिखर जाता है ये दिल...
जब कोई पूँछ लेता है कि,
तुमने भी प्यार किया था क्या " गुरु "...!!

वो जला रही है खून मेरा कतरा-कतरा...
कोई तो समझाओ उसको कि ,
उससे मेरा रिश्ता दिल का है ,खून का नही...!!

जरुरत है मुझे कुछ नये "नफरत" करने वालो की,
पुराने वाले तो अब चाहने लगे है मुझे...!!

वो कहती थी...
तुझसे बिछड़ कर वीरान हो जायेंगे हम,
जब उसके शहर मे आये हैं...
तो सबसे रोशन घर उसी का मिला है...!!

हालात कर देते है भटकने पर मजबूर " गुरु "...
घर से निकला हर शख्स आवारा नही होता...!!

लेने दे मुझे तू अपने ख़्वाबों की तलाशी,
मेरी नींद चोरी हो गयी है,
मुझे शक है तुझ पर...!!

काश मोहब्बत भी दिल्ली के ऑड-इवन फॉर्मूले की तरह होती,
एक दिन वो करती...दूसरे दिन उसकी सहेली !!

कर रखी थी मैने मोहब्बत से तौबा...
आज फिर तेरी तस्वीर देखकर नियत बदल गयी...!!

मोहब्बत ख़ूबसूरत होगी किसी और दुनियाँ में...
इधर तो हम पर जो गुज़री है हम ही जानते हैं...!!

अच्छा हुआ जो अब कोहरा पड़ने लगा...
तुम्हारे इंतज़ार में अब नज़र दूर तक न जाएगी...!!

ना चाहत, ना मोहब्बत, और ना वफा...
कुछ भी तो नही था उसके पास,
सिवाये हुस्न के...!!

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