Monday 2 May 2016

न जाने किस बात पे नाराज़ है वो हमसे

शायरी भी शतरंज की तरह का ही एक खेल है...
जिसमें लफ़्ज़ों के मोहरे मात दिया करते हैं एहसासों को...!!

न जाने किस बात पे नाराज़ है वो हमसे...
आजकल ख्वाबों में भी मिलती है,
तो बात नहीं करती...!!

हम जा रहे हैं वहां,जहाँ दिल की क़दर हो...
बैठी रहो तुम अपनी ज़िद और अदाएं लिए हुए...!!

क़यामत का तो सुना था,कि कोई किसी का ना होगा...
मगर अब तो दुनिया में भी ये रिवाज़ आम हो गया है...!!

मेरी मोहब्बत को उस पगली ने ये कहकर ठुकरा दिया था कि,
तुम पागल हो इश्क़ में और मैं पागलों से प्यार नही करती...!!

भला लफ़्ज़ों में इंतज़ार को कहाँ तक लिखे कोई,
कभी तुम खुद ही आके देख लो,कि अब थक रहा हूँ मैं...!!

No comments:

Post a Comment