Monday 2 May 2016

लफ़्ज़ों का कारीगर हूँ

काश मिल जाती सपनों की शहजादी...
या फिर नवाज़ शरीफ की बेटी से हो जाती हमारी शादी 😕😕
मिल जाता कश्मीर समस्या का समाधान...
दहेज में ले आता पूरा पाकिस्तान...कसम से...!!

बहुत भीड़ सी हो गयी थी उसके दिल में,
अच्छा हुआ कि हम वक़्त पर निकल गए...!!

जिंदगी में जिनके लिए हर हद से गुजर गया हूँ मैं,
जाने क्यों अब उनके ही दिल से उतर गया हूँ मैं...!!

मुड़े-मुड़े से हैं,मेरी किताब-ए-इश्क़ के पन्ने,
ये कौन है, जो हमे हमारे बाद पढ़ता है...!!

मसला यह नहीं कि मेरा दर्द कितना है,
मुद्दा ये है कि, तुम्हें परवाह कितनी है...??

जब जान प्यारी थी तो दुश्मन हजारो मेंं थे,
अब मरने का शौक हुआ तो कातिल ही नही मिलते...!!

औक़ात नही थी जमाने में,
जो मेरी कीमत लगा सके,
कमबख्त इश्क में क्या गिरे,
मुफ़्त में नीलाम करने पर तुले हुए हैं लोग...!!

लफ़्ज़ों का कारीगर हूँ "गुरु", दर्द तराशता हूँ...
चीख़ भी निकल जाती है और शोर भी नहीं होता...!!

दिल की बात कहता हूँ, बुरा तो नहीं मानोगी...
बड़ी राहत के दिन थे, तेरी पहचान से पहले...!!

खुशनसीब कुछ ऐसे हम हो जायें...
तुम हो.. हम हो..और इश्क़ हो जाये...!!

दुनिया नसीहत अच्छी देती है,
अगर दर्द किसी और का हो...!!

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