Thursday 1 October 2015

एक मशवरा चाहिये था साहब

सुनो ना, मेरी एक छोटी सी इच्छा है, एक टेबल, दो कॉफी, मैं और तुम...

दर्द हल्का हैं साँसे भारी हैं,जिए जाने की रस्म जारी है...!!

देख मेरे प्यार की इंतिहा,
तेरी गलतियों पर भी तुझे मनाने आया हूँ!!

बेवजह है, तभी तो मोहब्बत है...
वजह होती तो साजिश होती...!

ऐ ज़िन्दगी तू अपनी रफ़्तार पे ना इतरा,
जो रोक ली मैंने अपनी साँसें तो तू भी चलना पायेगी…

एक मशवरा चाहिये था साहब.?
दिल तोड़ा है इक बेवफा ने...!!
अब जान दूँ या जाने दूँ...

खूबसूरती से तो सब प्यार करते है..!!
पर...
हमने तो उसे खूबसूरत बनाकर प्यार किया था..!!

ना ढूँढ मेरा किरदार दूनिया की भीड़ में,
वफादार हमेशा तन्हा ही मिलते हैं...

चलते - चलते मेरे कदम अक्सर यही सोचते हैं कि,
किस तरफ जाऊं जो मुझे तू मिल जाये...!!

सोचता हूँ...टूटा ही रहने दूँ...इस दिल 💔 को... 
शायरी भी हो जाती है...और जीत भी लेता हूँ कई दिलों को...

वो तो खुद के दिल का सवाल था कि,
हम तेरे हो गए पगली,वरना
कई दिल तोड़े हमने इक ' ना ' बोलकर...

नफ़े नुक्सान की बात क्या करते हो इश्क़ में,
अरे इश्क़ है...धंधा नहीं...!!

लौट जाते फिर से उसके पास मगर क्या फायदा???
न दिल रहा, न प्यार रहा, न दिल को उस पे ऐतबार रहा...

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