एक बंध मेरी सभी बहनों को समर्पित करता हूँ.....
शुभम् सचान की तरफ से आप सभी को रक्षाबंधन की ढेरों शुभकामनायें
मन की बात : शुभम् सचान "गुरु" के साथ...
राखी के समय एक विचार आया मन मे
मैने भी सँजोया कविता को जहन मे
बहनों की राखियाँ बँधे भाई के हाथ मे
बाँटेंगे हम भी प्यार को बहनों के साथ मे
लेकिन पता नहीं क्यों ये पाँसा उलट गया
विधि का विधान कैसा ये ब्रम्हा उलट गया
चूनर थी माँ की उससे आग सेंकता रहा
बहनों की आबरु गई वो देखता रहा
शर्मों के द्वार मेरे लिये बंद हो गये
मेरे घर मे ही मेरे पाँव जरा मंद हो गये
सोचा नही था मैने की हो जायेगा ऐसा
बहनो से बढ़कर देश मे हो जायेगा पैसा
देखो समाज सो गया है ओढ़कर चादर
वो भूल गया माँ,बहन और बेटी का आदर
दौलत के पुजारी यहाँ बहुओं को मारते
खुदगर्ज बाप बेटियों को जिंदा गाड़ते
सोचा था कि डोली मे बैठ घर को जायेगी
बहनो के हाथ मेंहदी भी रचाई जायेगी
लेकिन नही इन सपनो को साकार कर सका
राखी के प्यार का न मै उपकार कर सका
बाबुल के घर क्या इसलिये पलती है बेटियाँ
दहेज की चिताओं मे जलती है बेटियाँ
बेटी का घर संसार तो सपने मे बसता है,
भारत मे एक भारत ऐसा भी बसता है॥
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