Thursday, 30 April 2015

बस एक करवट ज्यादा ले लूं


बस एक करवट ज्यादा ले लूं
किसी रोज़ सोते वक़्त,तो
माँ आज भी आकर पूछ लेती है
बेटा, तबियत तो ठीक है ना?
------------शुभम सचान "गुरु"-----------

Saturday, 25 April 2015

छोटे शहर के अखबार


छोटे शहर के अखबार जैसा हूँ मैं,,
      दिल से लिखता हूं,शायद इसलिए कम बिकता हूँ...
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-----------शुभम सचान "गुरु"-----------

Tuesday, 21 April 2015

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं


दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं!!
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-------------शुभम सचान "गुरु"-------------
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Sunday, 19 April 2015

बस यूँ ही लिखता हूँ


बस यूँ ही लिखता हूँ .. वजह क्या होगी??
राहत ज़रा सी... आदत ज़रा सी...!!
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-----------शुभम सचान "गुरु"------------

Tuesday, 14 April 2015

अजनबी अजनबी


हमसफ़र बन के हम साथ हैं आज भी, फिर भी है, ये सफ़र अजनबी अजनबी,
राह भी अजनबी, मोड़ भी अजनबी, जाएँ हम किधर अजनबी अजनबी,
ज़िन्दगी हो गयी है सुलगता सफ़र, दूर तक आ रहा है धुंआ सा नज़र,
जाने किस मोड़ पर खो गयी हर ख़ुशी, दे के दर्द-ऐ- जिगर अजनबी अजनबी,
हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो, आशियाँ हसरतों से सजाया था जो,
है चमन में वही आशियाँ आज भी, लग रहा है मगर अजनबी अजनबी,
किसको मालूम था दिन ये भी आयेंगे, मौसमों की तरह दिल बदल जायेंगे,
दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी, हर घडी हर पहर अजनबी अजनबी....!!!
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-----------------------------शुभम सचान "गुरु"---------------------------

Sunday, 12 April 2015

मेरी यादें

----------------------------मेरी यादें------------------------------
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वो ट्रेन के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ
वाली एक्स्ट्रा सीट पर बैठी थी,……
उसके चेहरे से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में
कि कहीं टीसी ने आकर पकड़ लिया तो।
कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीसी के आने का इंतज़ार करती रही।
शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी।
देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें
आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा।
सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग दिख रहा था।
मैं बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा
सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा।
फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी।
और मैं भी वापस से अपनी किताब पढ़ने में लग गया।
लगभग 1 घंटे के बाद टीसी आया और उसे हिलाकर उठाया।
“कहाँ जाना है बेटा”
“अंकल सहारनपुर तक जाना है”
“टिकेट है ?”
“नहीं अंकल …. जनरल का है ….
लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”
“अच्छा 300 रुपये का पेनाल्टी बनेगा”
“ओह … अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”
“ये तो गलत बात है बेटा …. पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी”
“सॉरी अंकल …. मैं अगले स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे
पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए
जल्दबाजी में घर से निकल आई …
और ज्यदा पैसे रखना भूल गयी…. ” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी
टीसी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे सहारनपुर तक उस डब्बे
में बैठने की परमिशन देदी।
टीसी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं
कोई उसकी ओर देखकर हंस तो नहीं रहा था।
थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके
पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं … सहारनपुर स्टेशन पर कोई
जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे, वरना वो समय पर गाँव
नहीं पहुँच पायेगी।
मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत
देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था,
दिल कर रहा था कि उसे पैसे देदूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो …
और रो मत …. लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात
सोचना थोडा अजीब था।
उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है
शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे।
बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने
लगे जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना कहलाऊं। फिर
मैं एक पेपर पर नोट लिखा,
“बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए देख रहा हूँ, जनता हूँ कि एक
अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा
और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान
देखकर मुझे बैचेनी हो रही है इसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ ,
तुम्हे कोई अहसान न लगे इसलिए मेरा एड्रेस भी लिख रहा हूँ …..
जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो ….
वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो ….. अजनबी हमसफ़र ”
एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले
को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे भेजा है।
नोट मिलते ही उसने दो-तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई उसकी
तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा।
लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था।
थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस की।
लगा जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था।
उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया ….
फिर चादर का कोना हटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर
जैसे सांस ले रहा था मैं।
पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी।
जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी …
ट्रेन सहारनपुर स्टेशन पर ही रुकी थी। और उस सीट पर एक
छोटा सा नोट रखा था …..
मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया ..
और उस पर लिखा था …
Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र ….
आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …. मेरी माँ आज मुझे
छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए
आनन – फानन में घर जा रही हूँ।
आज आपके इन पैसों से मैं
अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी ….
उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर
घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ …
जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी।
उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने
की वजह थे …. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन
उसका कोई ख़त आ जाये ….
आज लगभग 1 साल बाद एक ख़त मिला …
आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ ….
लेकिन ख़त के ज़रिये नहीं आपसे मिलकर …
नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था ….
और आखिर में लिखा था .. अजनबी हमसफ़र ……
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------------------------शुभम सचान "गुरु"-----------------------

Turn your face to the sun


“Turn your face to the sun and the shadows fall behind you.”
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--------------------------SHUBHAM SACHAN "GURU"-------------------------

तज़ुर्बा मेरा लिखने का


तज़ुर्बा मेरा लिखने का बस इतना सा है यारों
शायर सुनते है वाह वाह अपनी ही तबाही पर..
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----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

Suno... Meri Ye kuch Yaade Sambhal Kar Rakhna....


Suno... Meri Ye kuch Yaade Sambhal Kar Rakhna.... 
Kaun Jane... 
Tumhari Ye Berukhi Sahte-Sahte Mai Rahu Na Rahu..!!
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-----------------------SHUBHAM SACHAN "GURU"----------------------

Saturday, 11 April 2015

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस


अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !
"माँ,बहन,बेटी या महबूब के साये से जुदा,
एक लम्हा न हो, उम्मीद करता रहता हूँ 
एक औरत है मेरी रूह में सदियों से दफ़न ,
हर सदा जिस कि, मैं बस गीत करता रहता हूँ ...!"
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----------------------शुभम सचान "गुरु"----------------------

काश वो आकर कहे


काश वो आकर कहे एक दिन मोहब्बत से
ये बेसब्री कैसी ? तेरी हूँ, तसल्ली रख !!!
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----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

ऐ समन्दर.मैं तुझसे वाकिफ हूँ


ऐ समन्दर.मैं तुझसे वाकिफ हूँ,मगर इतना बताता हूँ,
वो आंखें तुझसे ज़्यादा गहरी हैं,जिनका मैं आशिक हूँ...
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-------------------------शुभम सचान "गुरु"-----------------------

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है


"तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
शाम की उदासी में याद संग खेला है
कुछ ग़लत न कर बैठे मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ होंठ का निमंत्रण है..."
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-----------------शुभम सचान "गुरु"-----------------

आज कुछ नही है मेरे पास


आज कुछ नही है मेरे पास लिखने के लिए
शायद मेरे हर लफ्ज़ ने खुद-कुशी कर ली
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---------------शुभम सचान "गुरु"--------------

मेरे होने से ख़फ़ा हैं


"मेरे होने से ख़फ़ा हैं कुछ लोग,
मेरे होने की गवाही ये है....!"
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-----------शुभम सचान "गुरु"-----------

जो नशा है


जो नशा है तेरी आँखो के पैमाने मे..
वो बात कहाँ शहर के मैखानो में!!
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-----------शुभम सचान "गुरु"----------

अपनी साँसों से


"अपनी साँसों से बिछड़ सकता हूँ जानां लेकिन
गैर मुमकिन है कि अब तुझसे जुदा हो जाऊँ
तू फरिश्तों की तरह हाथ उठाये रहना 
मैं तेरे इश्क़ में शायद की ख़ुदा हो जाऊँ ..."
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-----------------शुभम सचान "गुरु"---------------

मोहब्बत का मेरे


मोहब्बत का मेरे सफर आख़िरी है,
ये कागज, कलम ये गजल आख़िरी है
मैं फिर ना मिलूंग| कहीं ढूंढ लेना
तेरे दर्द का ये असर आख़िरी है!!
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----------शुभम सचान "गुरु"----------

पढ़ रहा हूँ


"पढ़ रहा हूँ, इश्क के क़ानून की किताब,
अगर बन गया वकील तो बेवफाओं की खैर नहीं"
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-----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

है कोई वकील


है कोई वकील इस जहान में..???
जो हारा हुआ इश्क जीता दे मुझको..!!
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-------------शुभम सचान "गुरु"-------------

कुछ इस तरह से


कुछ इस तरह से....नाराज हैं वो हमसे,
जैसे उन्हें,किसी और ने...मना लिया हो...!!
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----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

शायरी शौक नहीं


शायरी शौक नहीं,और ना ही कारोबार है मेरा
बस दर्द जब सह नहीं पाता,तो लिख लेता हूँ...
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----------------शुभम सचान "गुरु"-----------------

बचपन से ही


बचपन से ही अच्छा बनने का शौक था,
अब बचपन खतम तो शौक भी खतम...!!
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-----------------शुभम सचान "गुरु"-----------------

सुना है मोहब्बत का शौक़ नहीं है तुम्हे


सुना है मोहब्बत का शौक़ नहीं है तुम्हे,
पर बर्बाद तुम कमाल का करते हो....!!
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-----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

मेरी आँखों से


मेरी आँखों से ये छाला नहीं जाता मौला
इनसे तो ख़्वाब भी पाला नहीं जाता मौला
बख़्श दे अब तो रिहाई मेरे अरमानों को
मुझ से ये दर्द संभाला नहीं जाता मौला
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--------------शुभम सचान "गुरु"--------------

वो बड़े ताज्जुब से


वो बड़े ताज्जुब से पूछ बैठा मेरे गम की वजह...
फिर हल्का सा मुस्कराया,और कहा,मोहब्बत की थी ना...!!
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----------------------शुभम सचान "गुरु"------------------------

मजा आता है


मजा आता है किस्मत से लड़ने में,
किस्मत आगे बढ़ने नहीं देती
और मुझे रुकना आता नहीं..!!
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------------शुभम सचान "गुरु"------------

नाजुक मिजाज


नाजुक मिजाज है वो परी कुछ इस कदर,
पायल जो पहनी पाँव मे,तो छम-छम से डर गयी
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------------------------शुभम सचान "गुरु"----------------------

शायरों की महफ़िल में


शायरों की महफ़िल में बात चली एक दीवाने की
दिन रात जलने वाले एक पागल परवाने की 
मैंने सोचा कोई और होगा ये सरफिरा 
देखा तो ऊँगली मेरी तरफ उठी ज़माने की...
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-----------------------शुभम सचान "गुरु"------------------------

मेरे लफ्जों से


"मेरे लफ्जों से न करं मेरें "किरदार" का फैसलां...
तेरा "वजूद" मिट जाएगां मेरी हकिकत ढूँढते ढूंढते "
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-------------------------शुभम सचान "गुरु"-----------------------

मुझे अपने किरदार पे


मुझे अपने किरदार पे इतना तो यकीन है कि,
कोई मुझे छोड़ सकता है लेकिन भूल नहीं सकता...!!
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---------------------शुभम सचान "गुरु"-----------------------

मैं इस काबिल तो नही


मैं इस काबिल तो नही कि कोई अपना समझे....
पर इतना यकीन है...
कोई अफसोस जरूर करेगा मुझे खो देने के बाद..
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--------------------शुभम सचान "गुरु"------------------

तेरी चाहत में


तेरी चाहत में हम ज़माना भूल गये ! 
किसी और को हम अपनाना भूल गये !! 
तुम से मोहब्बत हैं बताया सारे जहाँ को ! 
बस एक तुझे ही बताना भूल गये.....!!
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-----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

मेरी शोहरत


मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज़ नहीं
मुझे सीने से लगाये फिरते है दीवाने मेरे।
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----------------शुभम सचान "गुरु"-----------------

क्यूँ ना सज़ा मिलती


"क्यूँ ना सज़ा मिलती मुझे इश्क़ में,
तोड़े दिल मैंने भी बहुत थे तेरी खातिर।"
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------------शुभम सचान "गुरु"------------

हम तक आकर लौट गई हैं


"हम तक आकर लौट गई हैं 
मौसम की बेशर्म कृपाएँ
हमने सेहरे के संग बाँधी 
अपनी सब मासूम खताएँ
हमने कभी न रखा स्वयं को 
अवसर के अनुपातों पर
नयन हमारे सीख रहे हैं 
हँसना झूठी बातों पर..."
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---------शुभम सचान "गुरु"---------

काश कैद कर ले वो


काश कैद कर ले वो पगली मुझे अपनी डायरी में...
जिसका नाम छिपा होता है मेरी हर शायरी में !
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-----------------शुभम सचान "गुरु"----------------

न करो नुमाइश


I HAVE LEARNT YET THAT
न करो नुमाइश अपने ज़ख्मों की यारो..
लोग हाथों में नमक लेकर घूमते हैं...
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-----------शुभम सचान "गुरु"-----------

हर तरफ़ लूट का मंज़र है


हर तरफ़ लूट का मंज़र है 
हर हांथ में एक खन्जर है 
न महफ़ूज़ गुलिस्ताँ है यहाँ
और न महफ़ूज़ समन्दर है
न कुछ जान के अन्दर है
न कोई जान ही अन्दर है
हर जिस्म के अन्दर का 
मंज़र भी तो खन्जर है
हर जिस्म के अन्दर का 
पर बवंडर भी तो अन्दर है
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----------शुभम सचान "गुरु"----------

चलो एक कंकड फेंकते हैं


चलो एक कंकड फेंकते हैं ख्यालों के दरिया में...
कुछ खलबली मचे,अहसास तो हो कि जिन्दा हैं हम....
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------------------------शुभम सचान "गुरु"-------------------------

चाँद क़िस्से तुम्हारे सुनाता रहा


"चाँद क़िस्से तुम्हारे सुनाता रहा ,
और ख़्यालों की बस्ती भी रोशन रही..!"
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---------------शुभम सचान "गुरु"----------------

आदते बुरी नहीं


आदते बुरी नहीं,शौक ऊँचे हैं..
वर्ना किसी ख्वाब की इतनी औकात नही
कि...हम देखे और पूरा ना हो...
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-------------------शुभम सचान "गुरु"-------------------

तूने फैसले ही


तूने फैसले ही फासले बढ़ाने वाले किये थे,
वरना कोई नहीं था,तुझसे ज्यादा करीब मेरे...

पिघले 'नीलम' सा बहता हुआ यह 'समाँ'


“पिघले 'नीलम' सा बहता हुआ यह 'समाँ', 
नीली नीली सी 'ख़ामोशियाँ'
ना कहीं हैं, 'ज़मीन' ना कहीं 'आसमान', 
सरसराती हुयी 'टहनियां',पत्तियाँ
कह रही हैं कि बस एक तुम हों यहाँ, 
सिर्फ 'मैं' हूँ,मेरी सांसें हैं और मेरी धडकनें, 
ऐसी गहराइयाँ,ऐसी तनहाइयाँ,
और 'मैं' सिर्फ 'मैं',
अपने होने पर मुझको यकीन आ गया”...
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--------------शुभम सचान "गुरु"----------------
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