Tuesday 21 April 2015

दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं


दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं
सब अपने चेहरों पे दोहरी नकाब रखते हैं
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं
ये मैकदा है, वो मस्जिद है, वो है बुत-खाना
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं
हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं!!
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-------------शुभम सचान "गुरु"-------------
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