Tuesday 14 April 2015

अजनबी अजनबी


हमसफ़र बन के हम साथ हैं आज भी, फिर भी है, ये सफ़र अजनबी अजनबी,
राह भी अजनबी, मोड़ भी अजनबी, जाएँ हम किधर अजनबी अजनबी,
ज़िन्दगी हो गयी है सुलगता सफ़र, दूर तक आ रहा है धुंआ सा नज़र,
जाने किस मोड़ पर खो गयी हर ख़ुशी, दे के दर्द-ऐ- जिगर अजनबी अजनबी,
हमने चुन चुन के तिनके बनाया था जो, आशियाँ हसरतों से सजाया था जो,
है चमन में वही आशियाँ आज भी, लग रहा है मगर अजनबी अजनबी,
किसको मालूम था दिन ये भी आयेंगे, मौसमों की तरह दिल बदल जायेंगे,
दिन हुआ अजनबी रात भी अजनबी, हर घडी हर पहर अजनबी अजनबी....!!!
--------------------------------------------------------------------------
-----------------------------शुभम सचान "गुरु"---------------------------

No comments:

Post a Comment