हर तरफ़ लूट का मंज़र है
हर हांथ में एक खन्जर है
न महफ़ूज़ गुलिस्ताँ है यहाँ
और न महफ़ूज़ समन्दर है
न कुछ जान के अन्दर है
न कोई जान ही अन्दर है
हर जिस्म के अन्दर का
मंज़र भी तो खन्जर है
हर जिस्म के अन्दर का
पर बवंडर भी तो अन्दर है
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----------शुभम सचान "गुरु"----------
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